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परफार्मिंग आर्टस विभाग ,स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय मेरठ में त्रि-दिवसीय अन्तराष्ट्रीय ई-कार्यशाला “संगीत में अनुसंधान समस्याएँ एंव समाधान का आयोजन”

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स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय में ललित कला संकाय के परफार्मिंग आर्ट्स विभाग में “संगीत में अनुसंधान समस्याएँ एंव समाधान ” विषय पर त्रि-दिवसीय अन्तराष्ट्रीय ई-कार्यशाला का शुभारंभ दिनाँक 5 नवम्बर 2020 को हुआ। त्रि-दिवसीय ई-कार्यशाला का शुभारंभ सुभारती विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय डाॅ० वी० पी० सिंह, ललित कला संकाय के प्राचार्य प्रो० डाॅ० पिन्टू मिश्रा एवं परफार्मिंग आटर््स की विभागाध्यक्ष प्रो० डाॅ० भावना ग्रोवर ने माँ सरस्वती  के समक्ष दीप-प्रज्जवलित करके किया एवं परफार्मिग आटर््स विभाग की छात्राओं ने वन्दना गाकर सत्र का शुभारंभ किया। प्राचार्य प्रो० डाॅ० पिन्टू मिश्रा ने कुलपति महोदय को पुष्प – गुच्छ एवं सम्मान देकर सम्मानित किया। कुलपति डाॅ० वी० पी० सिंह ने शुभाशीष देते हुये, कार्यशाला को शोधार्थीयो के लिये बहुत उपयोगी बताया।  कार्यशाला के आरम्भ में डाॅ० भावना ग्रोवर ने विषय से सबको अवगत कराया और तीन दिन तक चलने वाले इस कार्यशाला में किन-किन विषयों से ्रवक्ताओं द्वारा शोधार्थी लाभान्वित होंगे इस विषय पर प्रकाश डाला एवं सभी प्रतिभागियों को बधाई दी और तीन दिन तक इसी प्रकार कार्यशाला से जुड़े रहने की कामना की । डाॅ० भावना ग्रोवर ने यह भी बताया कि उक्त कार्यशाला का मुख्य उदेश्य है कि , संगीत एवं नृत्य विधा में अनेकानेक शोध देश के विश्वविद्यालयों में होते रहते है, और अनेक शोधार्थी अनेक प्रकार की शोध समस्याओं से घिरे रहते है, उन्हे एक सही दिशा – निर्देश की आवश्यकता है इस कार्यशाला से अनुसंधान के विषय , अनुसंधान की समस्याओं एवे शोधार्थीयों को नई शोध तकनीकों से अवगत कराया जाये। शोध किस प्रकार किया जाये इस बात से अवगत कराना ही कार्यशाला का मुख्य उददेश्य है।  ललित कला संकाय के डीन प्रो० डाॅ० पिन्टू मिश्रा जी ने परफार्मिंग आर्ट्स विभाग को अनेकानेक बधाई दी और कहा की इस प्रकार की कार्यशाला केवल संगीत के लिए ही नही बल्कि, सभी विषय के शोधार्थीयों के लिए लाभप्रद सिद्ध होगी।  ई – कार्यशाला के प्रथम सत्र के बीज वक्ता के तौर पर प्रख्यात लेखक एवं कलाकार पं० विजय शंकर मिश्र जी रहे। पं० जी ने अनुसंधान एवं संगीत के क्रियात्मक पक्ष के विषय मे बताया , पं० जी ने बताया कि किस प्रकार शास्त्र कला का अनुगामी है , उन्होने बताया कि किस प्रकार आराम अनुसंधान में अवरोधक है। उन्होने उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रो का सुंदर और सरल उदाहरण देकर अनुसंधान को परिभाषित किया। उन्होने बताया कि पिछले 25 वर्षो से देश के अनेक विश्व विद्यालयोे से अनेकानेक मेरे पास आते रहे है, किन्तु संगीत के क्षेत्र में किये गए कुछ ही शोध अनुसंधान की दृष्टि से मान्य है , उन्होने कहा कि संगीत शोधार्थीयों को संगीत में शोध के लिए पीछे मुड़कर संगीत के प्रमाणिक तथ्य , संगीत के इतिहास और गूढ़ लेखकों का अध्ययन करना होगा , अन्यथा प्रमाणिक तथ्य के बिना शोध का कोई अर्थ नही रहता । उन्होने अपने व्यक्तव्य में तीनो विषयों गायन,वादन और नृत्य को सम्माहित कर इनके क्रियात्मक पक्ष पर शोध करने के लिए जोर दिया और महत्वपूर्ण तथ्यों से अवगत कराया ।     ई – कार्यशाला के प्रथम सत्र के दूसरे वक्ता विश्वभारती विश्वविद्यालय, शंाति निकेतन पश्चिम बंगाल के तबला-विषय मे सहायक आचार्य डाॅ० अमित कुमार वर्मा रहे। उन्होनें बात की शोधार्थी शोध करते समय किस तरह से तथ्यों का संकलन करते है, उन्होने प्लैगरिज्म (शोध में की गई साहित्यक चोरी) से छात्रों को अवगत कराया , उन्होनंे बताया कि किस प्रकार शोधार्थी प्लैगरिज्म से बच सकते है , उन्होने यू०जी०सी० प्लैगरिज्म के नियम को विस्तार से बताया । उन्होनें ई-लाईब्रेरी से छात्रों का परिचय कराया और उन्होनें कहा की छात्रांे और शोधार्थीयो को किस प्रकार ई-डिजीटल को अधिक से अधिक बढ़ावा देना चाहियें ।   सुभारती विश्वविद्यालय के परफार्मिंग आर्ट्स विभाग में होने वाले विगत् त्रि- दिवसीय अन्तराष्ट्रीय ई-कार्यशाला में  दूसरे दिन दिनाँक 6 नवम्बर 2020  की पहली वक्ता कनोहर लाल महिला महा विद्यालय की संगीत विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ० वेनु वनिता जी रही। उन्होने अपने व्यक्तव्य में संगीत में अनुसंधान एवं उनकी दिशाओं के तथ्य से परिचित कराया और उन्होनें कहा की शोध ही अच्छे समाज का सबल प्रमाण है । उन्होने संगीत में अनुसंधान के व्यापक क्षेत्र ओर उनके विषय में संक्षिप्त परिचय देकर विषय से अवगत कराया । उन्होनें छंद शास्त्र , नाट्यशास्त्र , विषयगत शोध , समाज व संगीत के संबंध , सौन्दर्यशास्त्र , मनोविज्ञान , दैहिकविज्ञान एवं लोक तात्विक शोध आदि के विषयों  पर प्रकाश डाला । दूसरी वक्ता ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय , दरभंगा , बिहार की प्रो० और विभागाध्यक्ष डाॅ० लावण्या र्कीति सिंह ’काब्या’ जी रही उन्होनें अनुसंधान विषय पर चर्चा कर शोधार्थीयों को बताया की शोध कार्य मन की जिज्ञासा से ही उत्पन्न होता है, उन्होने कहा कि किसी भी बात या प्रश्नो को सिर्फ पढ़ना ही नही बल्कि उसे समझना भी है , तभी अनुसंधान को करने की इच्छा मन में जाग्रत होगी। उन्होनें शोधार्थीयों के लिए शोध प्राविधि (रिसर्च मेथेडोलाॅजी) की कक्षाओं को होना चाहिएं इस बात पर अधिक जोर दिया। उन्होनें शि़िक्षत जन या विद्ववानों की संगति के महत्व को भी उकेरा और कहा की गुणीजनों की संगति से व्यक्ति के व्यक्तित्व में गूढ़ता आती है । कार्यशाला में तीसरे दिन दिनाँक 7 नवम्बर 2020 की पहली वक्ता कैलिफोर्निया यू० एस० ए० से डाॅ० जाॅयता बोस मण्डल जी रही। उन्होने शोध प्रबंध के संबंध में अपने अनुभव शोधार्थीयों के साथ सांझा किया , उन्होने बताया कि किस तरह से शोधार्थीयों को एक एक अध्याय करके अपने शोध को प्रारम्भ करना चाहिए, उन्होने यहाँ यह भी कहा कि विश्व विद्यालय को शोध सूची भी जारी करनी चाहिए और , कहा कि संगीत के छात्रों और शोधार्थीयों के लिए कालिज और विश्व विद्यालय में वर्ष में लगभग दो – तीन संगीत गोष्ठी या कार्यशाला अवश्य होनी चाहिए । उन्होने अपने गुरू डाॅ० रामाश्रय झाँ जी के विषय में भी बात की और अपने गुरू द्वारा रचित 18 रागो में निबद्ध राग माला का गायन किया ।  तीसरे दिन की दूसरी वक्ता पंजाब विश्व विद्यालय , चंढीगढ संगीत विभाग से सेवानिवृत प्रो० डाॅ० पंकज माला शर्मा जी रहीं , उन्होने पांडुलिपि के विषय में विस्तार से चर्चा कि,  उन्होनें पांडुलिपि के वैदिक काल से लेकर वर्तमान तक सब तथ्यों से अवगत कराया , उन्होने छात्रों और शोधार्थीयों को बताया कि पीलें पत्तो पर लिखे ग्रंथ को “पांडुलिपि पत्र” को कहा जाता है। उन्होने संगीत के अलावा भी आर्ट विषय पर भी चर्चा कि , उन्होने कांगड़ा आर्ट को भी अपने व्यक्तिव्य में प्रकाशित किया। देश विदेश से जुडे़ इस ई -कार्यशाला में लगभग 200 प्रतिभागियों ने प्रतिभागिता की । जिसमें प्रतिभागियों ने संगीत से जुडें अनेकानेक प्रश्न पूछे, जिनको संगीत-शास्त्रीयों ने शोधकर्ताओ को उत्तर देकर उनकी जिज्ञासाओं को तृप्त किया।
अन्त में त्रि-दिवसीय ई-कार्यशाला के बीज वक्ता रहे पं० विजय शंकर मिश्र जी ने तीनो दिन की कार्यशाला के समुचित विषय पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला और सभी वक्ताओं को धन्यवाद कहा। अन्त में परफार्मिंग आर्ट विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ० भावना ग्रोवर जी ने त्रि-दिवसीय ई-कार्यशाला में आये सभी वक्ताओं का आभार ज्ञापित किया , उन्होने सुभारती विश्व विद्यालय के संस्थापक डाॅ० अतुल कृष्ण जी और डाॅ० मुक्ति भटनागर , सी० ई० ओ० मैम , सुभारती विश्व विद्यालय के कुलपति डाॅ० वी० पी० सिंह , ललित कला संकाय के प्राचार्य डाॅ० पिन्टू मिश्रा जी व परफार्मिंग आर्ट्स विभाग के सभी सक्रिय सदस्य डाॅ० प्रीति गुप्ता , डाॅ० आकाक्षा सारस्वत , अभिषेक कुमार मिश्रा, निशी चैहान , श्वेता सिंह का आभार व्यक्त किया । डाॅ० ग्रोवर ने बताया कि तीनों दिन के सत्र सुभारती  यूटयूब चैनल पर भी उपलब्ध है , जिन्हें शोधार्थी कभी भी सुनकर अपना ज्ञान आर्जन कर सकते है । उन्होने कहा कि भविष्य में भी इस प्रकार की गोष्ठीयां व कार्यशाला विभाग में कराते रहेंगें , जिससे छात्र और शोधार्थी लाभान्वित हो सके । कार्यशाला के उपरान्त तीनों दिन के व्यक्तव्य पर आधारित प्रश्नावली फीडबैक फार्म सभी प्रतिभागियों द्वारा भरवाया गया, तदोपरान्त कार्यशाला फीडबैक फार्म विभाग की मेल आईडी पर प्राप्त होतेे  ही, कार्यशाला का ई-प्रमाणपत्र प्रतिभागियों को भेजे गए ।

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