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The case of fake Remdesivir injections at Subharti Hospital

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Press release

The Justice of Senior Superintendent of Police, Meerut

The investigation carried out for the Subharti management system in the case of fake Remdesivir injections is going on very intensively and it may take one or two more days to be completed as the investigation is being done quite thoroughly. The Subharti management system neither protects any particular person, who is doing black marketing in the time of this national disaster nor does it in any way advocate for being judged mildly by the administration.

When the police accuse any person in any case, the accused always says that such a police officer is against him or he has been framed. In such a situation, does the Senior Superintendent of Police ever recommend the transfer of the investigation to another district? The answer is clear: never! But in the current fake Remdesivir injections case, a major newspaper has reported that the senior superintendent of police of Meerut has recommended to his superiors that since the Subharti management system is not satisfied with the investigation, the investigation should be transferred to another district. If the Subharti management system stands accused, what difference does it make to you if we say anything in regards to the investigation. If you want to transfer this investigation to a police officer of another district in accordance with the principle of natural justice, then please recommend all investigations be transferred from under your supervision to other districts. The problem is –  Manyavar has already reached all conclusions without investigating or any substantial evidence for illegal activities at Subharti Hospital.

The matter of getting any evidence against the Subharti management system or giving a clean chit to it is not part of the functioning of Manyavar.

I sense another angle behind the recommendation to transfer the discussion to another district?

  1. About two years ago, Rs. 2 lakh of a student’s security was seized by the Director-General of Medical Education, Uttar Pradesh, because the student did not take admission in Subharti Medical College even though it was allotted to him through NEET Counseling. I was pressured by the Senior Superintendent of Police through his aids and a police inspector, that even if the money was seized by the Uttar Pradesh government, I would have to return the money to the student through the person of their choice.
  2. In the last academic session, the pressure was created upon me by the same officer to give admission in Subharti Medical College, knowing that under the present system no college can take direct admissions. This pressure was created by the senior officer through a police inspector.
  3. In the Hariom Anand suicide case, the pressure was put on me through various persons that I should meet the same senior officer in order to get my name removed from the FIR. The most prominent of all these people pressuring me was an inspector; sometimes explaining, and sometimes trying his best to scare me  (but with great respect). The inspector said in plain and simple words that I should listen to what they suggest as “the police can do anything”.

  4. Two employees were arrested on charges of black marketing of drugs in the current Remedesiver Injections case. It is being propagated that an investigation will be done against me and my son and there is also a plan to enable RASUKA in the case. In this case, see a coincidence that the police inspectors who were here also turned out to be the police inspectors mentioned in the first three points.

I have not written anything else which is conclusive, except that I have so much conviction that I can write this against the Senior Superintendent of Police of the district. A person of falsehood and thief tendency does not have the courage. Courage lies only in the person walking on the path of truth. The other important point is that in the four cases mentioned above, the senior and police inspector is the same person.

Is this a mere coincidence? Or does it indicate a conspiracy created by the Senior Superintendent of Police?

Please consider the questions raised by me seriously. By the way, I partially agree with the proposal of the Senior Superintendent of Police that the police officers of another district should carry out the investigation. The necessary criteria (spiritual force) to carry out this investigation is not in the police working under the leadership of Senior Superintendent of Police, Meerut.

I myself am going to pray to the Hon’ble Chief Minister to investigate not only me, my son Dr. Krishna Murty but also my entire family and the entire Subharti by a team formed under the senior and most rigid but honest officer. I also appeal that an investigation should be done on the conduct of the senior superintendent of police, Meerut.

Atul Krishna Bodh / 26.04.2021

प्रेस विज्ञप्ति

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, मेरठ की नैसर्गिक न्यायप्रियता

रेमडेसीवर प्रकरण में सुभारती प्रबन्ध तन्त्र द्वारा की जा रही जांच बड़ी गहनता से चल रही है तथा इसके पूर्ण होने में एक-दो दिन और भी समय लग सकता है चूंकि जांच बड़े विस्तार के साथ की जा रही है। सुभारती प्रबन्ध तन्त्र किसी भी दोषी व्यक्ति को विषेष रूप से जो इस राष्ट्रीय आपदा के समय काला बाजारी कर रहा हो, को न तो संरक्षण देती है और ना ही किसी भी प्रकार उसके प्रति प्रषासन के द्वारा नर्मी से बरतने की पक्षधर है।

पुलिस किसी भी व्यक्ति को किसी भी केस में जब आरोपी बनाती है तो आरोपी हमेषा यह ही कहता है कि पुलिस का अमुक अधिकारी उसके विरूद्ध है अथवा उसे साजिषन फँसाया गया है। ऐसे में क्या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जांच को दूसरे जिले में स्थानान्तरित किए जाने की संस्तुति करते हैं? उत्तर स्पष्ट हैः कभी नहीं। परन्तु वर्तमान रेमीडेसिवर इंजेक्षन प्रकरण में एक प्रमुख समाचार पत्र में यह समाचार छपा है कि मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा अपने वरिष्ठ अधिकारियों से यह संस्तुति की गई है कि चूंकि सुभारती प्रबन्ध तन्त्र विवेचना से संतुष्ट नहीं है तो इस जांच को किसी अन्य जनपद में स्थानान्तरित कर दिया जाए। अरे भाई! सुभारती प्रबन्ध तन्त्र को तो आपने एक आरोपी बना रखा हैं उसके कुछ भी कहने पर आप पर क्या अंतर पड़ता है? यदि आप ये नैसर्गिक न्याय सिद्धान्त के अनुसरण में विवेचना किसी अन्य जनपद के पुलिस अधिकारी को स्थानान्तरित कराना चाहते हैं तो कृपया अपने अधीन की जा रही सभी जांचों को अन्य जनपदों में स्थानान्तरित करवाने की संस्तुति करने की कृपा करें क्योंकि यह स्वभाविक है कि सभी जांचों में अरोपियों द्वारा पुलिस के नेतृत्व में की जा रही जांचों पर प्रष्न चिन्ह लगाया गया होगा। समस्या तो मान्यवर के साथ यही है के वे तो बिना जांच किए सारे नतीजों पर पहले ही पहुंच चुके है कि सुभारती अस्पताल में अवैध कार्य होते है। रही बात सुभारती प्रबन्ध तन्त्र के विरूद्ध कोई साक्ष्य मिलने या उसे क्लीन चिट देने की बात तो वह तो मान्यवर की कार्यप्रणाली का हिस्सा ही नहीं है। \

मुझे तो विवेचना को किसी अन्य जनपद में स्थानान्तरित करवाने की संस्तुति के पीछे कुछ और बात ही दिखाई देती है?

  1. लगभग दो वर्ष पूर्व एक छात्र की सिक्योरिटी के दो लाख रूपये महानिदेषक चिकित्सा षिक्षा उत्तर प्रदेष द्वारा जब्त कर लिए गए चूंकि उसने नीट काउन्सलिंग के माध्यम से एलाट किए जाने पर भी सुभारती मेडिकल कॉलिज में प्रवेष नहीं लिया। श्रीमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा दो क्षेत्राधिकारियों एवं एक पुलिस निरीक्षक के माध्यम से मुझ पर यह दबाव बनाया गया कि चाहे वे रूपये उत्तर प्रदेष सरकार द्वारा जब्त किए गए हों परन्तु मैं वे रूपये उनके बताए व्यक्ति के माध्यम से छात्र को लौटाऊँ।
  2. पिछले शैक्षिक सत्र में सुभारती मेडिकल कॉलिज में एक छात्र के प्रवेष के लिए आप महोदय द्वारा अनुचित दबाव बनाया गया, यह जानते हुए भी कि वर्तमान व्यवस्था के अन्तर्गत कोई भी विद्यालय सीधे प्रवेष नहीं ले सकता। यह दबाव आप महोदय द्वारा एक पुलिस निरीक्षक के माध्यम से बनाया गया।
  3. हरिओम आनन्द आत्महत्या प्रकरण में विभिन्न व्यक्तियों के माध्यम से मुझपर दबाव बनाया गया कि मैं प्राथमिकी से अपना नाम निकलवाने हेतु आपसे मिलूँ। इन विभिन्न व्यक्तियों में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति एक पुलिस निरीक्षक महोदय थे जिन्होंने मेरे पीछे पूरे दबाव के साथ; कभी समझाते हुए, कभी डराते हुए (परन्तु बड़े सम्मान के साथ), यह कहने की कोषिष की कि मैं आपकी बात मान लूँ क्योंकि पुलिस कुछ भी कर सकती है।
  4. वर्तमान रेमडेसिवर इंजेक्षन प्रकरण में दो कर्मचारियों को दवाओं की कालाबाजारी करने के आरोप में पकड़ा गया। प्रचार किया जा रहा है कि मेरे एवं मेरे बेटे के विरूद्ध भी जांच की जाएगी और रासुका भी लगाने की तैयारी है। इस प्रकरण में एक इत्तेफाक देखिए कि यहां भी जो पुलिस निरीक्षक थे वे भी वे ही पुलिस निरीक्षक निकले जिनका जिक्र पहले तीन बिन्दुओं में किया गया है।

मैंने जो ऊपर लिखा है उसमें कोई विषेष बात दिखाई नहीं देती सिवाय इसके कि मुझमें इतना साहस है कि मैं जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के विरूद्ध यह बात लिख सकूँ। झूँठे और चोर प्रवृत्ति के व्यक्ति में साहस नहीं होता। साहस केवल सच्चाई पर चलने वाले व्यक्ति में होता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऊपर लिखे चारों प्रकरणों में पुलिस निरीक्षक एक ही व्यक्ति है। क्या यह मात्र संयोग है या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के द्वारा रची गई किसी साजिष को इंगित करता है?

कृपया मेरे द्वारा उठाए गए प्रष्नों पर गम्भीरता से विचार करें। वैसे मैं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के इस प्रस्ताव कि की जांच किसी दूसरे जनपद के पुलिस अधिकारियों से कराई जाए, से आंषिक रूप से सहमत हूँ। इस जांच को करने के लिए जो आवष्यक मापदण्ड (आत्मिक बल) होना चाहिए वह मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में काम करने वाली पुलिस में नहीं है।

मैं स्वयं मा0 मुख्य मंत्री जी से यह प्रार्थना करने जा रहा हूं कि वे मेरे, मेरे पुत्र डा0 कृष्णा मूर्ति की ही नहीं बल्कि मेरे सम्पूर्ण परिवार एवं सम्पूर्ण सुभारती की जांच किसी वरिष्ठतम एवं सबसे कठोर परन्तु ईमानदार अधिकारी के अन्तर्गत गठित टीम द्वारा करवाएँ और इस जांच में मेरे अतिरिक्त मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के आचरण की भी जांच हो।

अतुल कृष्ण / 26.04.2021

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