द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
राहुल सांकृत्यायन सुभारती स्कूल ऑफ लिंग्विस्टिक्स एंड फॉरेन लैंग्वेजेज
(भाषा विभाग) कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय
स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ एवं
अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ, दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित
द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी चिति सम्वाद : साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श
7-8 फरवरी 2025
राहुल सांकृत्यायन सुभारती स्कूल ऑफ लिंग्विस्टिक्स एंड फॉरेन लैंग्वेजेज (भाषा विभाग), कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय, स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ एवं अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ, दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में 7-8 फरवरी 2025 को ‘चिति सम्वाद : साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श’ विषय पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में देशभर से शिक्षाविदों, विद्वानों और लेखकों ने भाग लिया तथा चिति विमर्श पर गहन विचार-विमर्श किया।
संगोष्ठी का शुभारंभ इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सुभारती विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति कर्नल डॉ. देवेंद्र स्वरुप, कार्यक्रम अध्यक्ष एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री व इतिहासकार प्रो. निर्मल सिंह, विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की उपाध्यक्ष एवं केन्द्रीय साहित्य अकादमी की अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा, पूर्व आईएएस अधिकारी सत्येंद्र सिंह, अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष व आकाशवाणी महानिदेशालय के पूर्व निदेशक सोमदत्त शर्मा, कार्यक्रम संयोजक एवं अध्यक्ष, भाषा विभाग, डॉ. सीमा शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
इस अवसर पर उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली ने सतत विकास के साथ चरित्र निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि भारत की गौरवशाली संस्कृति और रचनात्मकता विश्वभर में प्रसिद्ध है, किंतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तकनीक रचनात्मकता को प्रभावित कर रही है। कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. निर्मल सिंह इतिहासकार एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर ने भारतीय गुरुकुल परंपरा से प्रेरणा लेकर ज्ञानवर्धन की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा साधन है और भारतीय भाषाएं अपने संस्कारों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रो. कुमुद शर्मा ने ‘चिति संवाद’ की व्याख्या करते हुए इसे हमारी सामूहिक अस्मिता से जोड़ा और स्त्री विमर्श पर भी अपने विचार रखे। पूर्व आईएएस सत्येंद्र सिंह ने साहित्य और कलाओं में ‘चिति’ की भूमिका पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने सतत विकास के साथ चरित्र निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत की गौरवशाली संस्कृति और रचनात्मकता विश्वभर में प्रसिद्ध है, किंतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तकनीक रचनात्मकता को प्रभावित कर रही है। कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के अध्यक्ष प्रो. सुधीर त्यागी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
स्मारिका विमोचन– उद्घाटन सत्र के अंतर्गत इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका (चिति संवाद) का भी विमोचन किया गया। स्मारिका चिति विमर्श के विभिन्न आयामों को स्पष्ट करती है। स्मारिका अनेक प्रबुद्ध विद्वानों के विचार संलग्न किये गए हैं।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिवस पर विभिन्न सत्रों में विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। इनमें प्रमुख रूप से प्रो. सर्वेश पाण्डेय (डीसीएसके स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मऊ, उत्तर प्रदेश), प्रो. रचना विमल (अध्यक्ष, हिंदी विभाग, सत्यवती महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय), डॉ. सुशील तिवारी (इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली), डॉ. श्रीराम परिहार (निमाड़ लोक कला केंद्र, सीवी रमन विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश), मेजर डॉ. सरस त्रिपाठी (संविधान एवं कश्मीर संबंधी विषयों के विशेषज्ञ एवं लेखक), डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष (कवि एवं पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान साहित्य अकादमी), इंदिरा मोहन (अध्यक्ष, दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन), प्रो. गीता सिंह (निदेशक, सीपीडीएचई, दिल्ली विश्वविद्यालय), पद्मश्री विष्णु पांड्या (गुजराती लेखक एवं विचारक, गुजरात साहित्य अकादमी) ने चिति संवाद, साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श पर गहन विचार-विमर्श किया।
चिति सम्वाद : साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श के प्रथम दिवस 7 फरवरी का समापन शास्त्रीय नृत्य कथक एवं हवेली संगीत की मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति के साथ किया गया। रणछोड़ लाल गोस्वामी द्वारा हवेली संगीत की प्रस्तुति दी गई, जिससे सभागार भक्तिकाल के वातावरण में रम गया। संस्कृति मंत्रालय द्वारा नामित विख्यात कथक कलाकार रंजना नैब ने अपनी मनमोहक कथक प्रस्तुति से सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस अवसर पर स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय की माननीय कुलाधिपति डॉ. स्तुति नारायण कक्कड़ उपस्थित रहीं। उन्होंने इस प्रस्तुति की अत्यंत सराहना की और कहा कि इस तरह के आयोजन निरंतर होते रहने चाहिए, जिससे विद्यार्थी भारतीय संस्कृति के साथ जुड़े रह सकें।
राष्ट्रीय संगोष्ठी, चिति सम्वाद : साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श
8 फरवरी 2025 द्वितीय दिवस
प्रथम सत्र- भारत एक समाज : लोक समाज और लोक परंपराएं–अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ की ओर से संगोष्ठी के दूसरे दिन के प्रथम सत्र का संचालन श्री सुनील बादल ने किया। सत्र की अध्यक्षता जंतु विज्ञान विभाग, रांची विश्वविद्यालय, झारखंड के अध्यक्ष डॉ. गणेश चंद्र बास्की ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय लोक संस्कृति गांवों, कस्बों और शहरों के विविध रूपों में प्रकट होती है। भाषाएँ, परंपराएँ, और लोक संस्कृति भले ही विविध हों, लेकिन उनकी एकता ही भारतीयता की पहचान है। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति के संगम के रूप में परिभाषित किया।
जनजातीय साहित्य और संस्कृति के विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत चंदेला ने लोक समाज और लोक परंपराओं पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। दिल्ली की प्रसिद्ध लेखिका और रंगकर्मी सविता शर्मा नागर ने “भारत: एक समाज, लोक समाज और लोक परंपराएँ” विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने लोक परंपराओं को आधुनिक समय से जोड़ते हुए नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
द्वितीय सत्र- साहित्य में चिति तत्व: स्वरूप और संवेदना में शिक्षाविद्, संस्कृति अध्येता एवं पूर्व प्रकाशन सलाहकार, केंद्रीय हिंदी संस्थान, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के डॉ. स्वर्ण अनिल ने किया। उन्होंने विभिन्न कथाओं के माध्यम से चिति तत्व की व्याख्या की। अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के डॉ. प्रेम चंद्र न्यासी ने साहित्य में चिति तत्व के स्वरूप और संवेदना पर गहन विचार प्रस्तुत किए।
शाहिद मंगल पांडेय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मेरठ की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सुधा रानी सिंह ने साहित्य में चिति के समावेश को ऐतिहासिक और समकालीन दृष्टि से प्रस्तुत किया। सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध लेखक, हैदराबाद, तेलंगाना की डॉ. सुमन चौरे ने की। उन्होंने कहा कि जीवन के अनुभव, अनुसंधान और अनुकूलन की प्रक्रिया के माध्यम से ही किसी समाज या मानव समुदाय की चिति का विकास होता है।
तृतीय सत्र: कलाओं में चिति का स्वरूप सत्र का संचालन प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक अभिजीत कुमार ने किया। प्रसिद्ध लोक चित्रकला कलाकार सुषमा सिटोके ने कलाओं में चिति तत्व के स्वरूप को विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि लोक कलाओं में चिति तत्व कैसे परिलक्षित होता है। रंगकर्मी और निर्माता-निर्देशक राजेश अमरोही ने भी कलाओं में चिति के समावेश पर अपने विचार प्रस्तुत किए। सत्र की अध्यक्षता प्रो. रचना विमल ने की। प्रथम और द्वितीय समानांतर सत्रों में प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया।
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में संगोष्ठी का प्रतिवेदन भाषा विभाग के डॉ. आशीष कुमार द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर पद्मश्री डॉ. माधुरी बड़थ्वाल ने विशिष्ट उद्बोधन दिया। अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सोमनाथ शर्मा ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। समापन सत्र की सह-अध्यक्षता पद्मश्री विष्णु पंड्या ने की।
स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय की कुलाधिपति डॉ. स्तुति नारायण कक्कड़ ने कहा कि लोक साहित्य और लोक संस्कृति भारतीय समाज की अमूल्य धरोहर हैं। उन्होंने राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल आयोजन पर विश्वविद्यालय के भाषा विभाग, कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय एवं अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ को शुभकामनाएँ दीं।
विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ. जी. के. थपलियाल ने गीता के उद्धरण देते हुए चिति के स्वरूप को स्पष्ट किया और कहा कि देश को सही दिशा देने के लिए इस प्रकार के आयोजन आवश्यक हैं। मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. शल्या राज एवं कार्यकारी अधिकारी डॉ. कृष्णा मूर्ति ने भी संगोष्ठी के सफल आयोजन पर बधाई दी। इस अवसर पर अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के पदाधिकारियों द्वारा विश्वविद्यालय के अधिकारियों को स्मृति चिह्न एवं अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम संयोजक एवं भाषा विभागाध्यक्ष डॉ. सीमा शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में 21 राज्यों के 350 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
संगोष्ठी के आयोजन में कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के अध्यक्ष प्रो. सुधीर त्यागी, डॉ. सीमा शर्मा, प्रो. राजेश्वर पाल, डॉ. रफ़त खानम, डॉ. मनीषा लूथरा, डॉ. स्वाति शर्मा, डॉ. यशपाल, डॉ. आशीष कुमार ‘दीपांकर’, डॉ. निशि राघव, डॉ. रणवीर सिंह, अंकित, सान्या अग्रवाल तथा भाषा विभाग के शोधार्थियों, परास्नातक एवं स्नातक छात्रों ने विशेष योगदान दिया।
कार्यक्रम के समापन सत्र में कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय के अध्यक्ष प्रो. सुधीर त्यागी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संयोजन भाषा विभागाध्यक्ष डॉ. सीमा शर्मा ने किया।
इस आयोजन को सफल बनाने में प्रो. राजेश्वर पाल, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ. रफ़त खानम, डॉ. आशीष कुमार ‘दीपांकर’, डॉ. निशि राघव, डॉ. स्वाति शर्मा, डॉ. मनीषा लूथरा, डॉ. यशपाल, डॉ. रणवीर सिंह, अंकित, सान्या अग्रवाल, श्री समीर सिंह दीपक एवं मंजू सहित भाषा विभाग के शोधार्थियों, परास्नातक एवं स्नातक छात्रों रंजना नैब, प्रज्ञा शर्मा, शिवानी फोगाट, निशा, छवि,अपूर्वी, शिखा, विधि गोस्वामी, सामिया, विधि चौहान, भूमि, ख़ुशी, मयंक,फहद आदि का विशेष योगदान रहा। इसके साथ साथ विश्वविद्यालय के विभिन्न पदाधिकारियों एवं तकनीकी टीम का तथा शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का महत्वपूर्ण सहयोग रहा।
‘चिति संवाद: साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श‘ विषय पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्देश्य:
- चिति की अवधारणा और स्वरूप को समझना: चिति की अवधारणा और इसके विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझना।
- चिति विमर्श पर गहन विचार-विमर्श: साहित्य और कला में चिति विमर्श पर शिक्षाविदों, विद्वानों और लेखकों के बीच गहन विचार-विमर्श करना।
- भारतीय संस्कृति की महत्ता को समझना: भारत की गौरवशाली संस्कृति और उसकी रचनात्मकता को समझना और उसे प्रस्तुत करना।
- सतत विकास और चरित्र निर्माण पर बल: सतत विकास के साथ-साथ चरित्र निर्माण की आवश्यकता पर विचार करना।
- भाषा एवं अभिव्यक्ति के साधन के रूप में चिति: भाषा को अभिव्यक्ति के सबसे बड़े साधन के रूप में मान्यता देना और भारतीय भाषाओं के महत्व को उजागर करना।
- चिति संवाद के माध्यम से सामूहिक अस्मिता: ‘चिति संवाद’ को सामूहिक अस्मिता से जोड़ना और स्त्री विमर्श जैसे मुद्दों पर विचार करना।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रचनात्मकता: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तकनीक के रचनात्मकता पर प्रभाव को समझना और इस पर चर्चा करना।